सामाजिक और मानवीय संकटों के बीच स्त्री के जीवन को परिभाषित करना जटिल सा लगता है,क्योंकि वर्तमान समय स्त्री मन की कोमलता और सहनशीलता को नष्ट करने में लगा है.
निशा कुलश्रेष्ट की कविताएं ऐसे समय में स्त्री के संवेदन मन की कोमलता की पड़ताल करती हैं.
" गूंजता है मौन स्वर " इनका पहला कविता संग्रह है,जो बोधि प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है. संग्रह की कविताएं स्त्री के भीतर आहत होती स्त्री की अनुभूतियों को व्यक्त करती हैं,इन कविताओं में स्त्री की लाचारी नहीं बल्कि आक्रोश और वैचारिकता का प्रभावपूर्ण मिश्रण है......." ज्योति खरे "
जन्म --- 19 मई 1963
शिक्षा ---- एम.ए ( राजनीति शास्त्र, इतिहास ) बी.एड
आत्मकथ्य ---- विस्तार लेती है जब मौन की चादर...गहराता है गहन अंधकार विचारों का कराहता है जब प्राणों का स्पंदन .... तब गूंजता है मौन स्वर
मैं एक स्त्री
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क्या तुम मुझे अपनी
बुरी नजर से बख्श दोगे
क्या तुम मेरी सांसें
मेरी तरह लेने की इजाज़त दोगे
और क्या मैं तुम्हारी कुटिल चालों से
कभी मुक्त हो सकूंगी ..
क्यों तुमने हर नियम दस्तूर
बनाये मेरे लिए
वह गुस्ताखियां जो तुमने की हैं
क्या उन गुस्ताखियों की
तुम कीमत अदा कर सकोगे ...
मेरा खिला-खिला चेहरा
मेरे लिए अभिशाप बन जाता है
तुम्हारी नियति के चलते
तुम मुझे देखे बिना रह नहीं पाते
मगर मैं वन्दनीय नहीं
सिर्फ वासना की द्रष्टि का शिकार बनती हूँ ....
कब बदलेगा ये दस्तूर,कब बदलेगा ये तुम्हारा वहशी बन जाना
कब तुम मुझे मेरी खुशी के लिए जीने दोगे ?
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एक स्त्री....
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एक स्त्री बुन लेती है कविता
पुराने कपड़े की सीवन उधेड़ते हुए
घूम आती है चाँद पर
रसोई में गोल- गोल रोटियाँ बनाते हुए
एक स्त्री कल्पनाओं के शहर में
स्वर्ग बना लेती है अपना
और जी लेती है अनकहे ... अनगिनत खूबसूरत लम्हे
दुनियां भर के कठोर यथार्थ में भी
मुस्करा लेती है एक स्त्री
पहाड़ से दर्द को मुठ्ठी में बंद कर
सह जाती है एक स्त्री
प्रेम के पुंज सी जगमगाती हुयी
दीवाली के दीये सी रौशन कर
खुद को मिटा लेती है एक स्त्री
सौन्दर्य की प्रतिमा सी/ सहज कल्पनाओं सी
प्रेम की प्रतिमूर्ति सी .... शांत बहती हुई झील सी
सारे संसार को अपने आप में
सहेजे होती है एक स्त्री.......
संपर्क ---- डी-116,गरिमा विहार (कृभको), सेक्टर- 35 नॉयडा (उत्तर प्रदेश) -- 201301
ईमेल ----- nisha.kulshreshtha@gmail.com
badhiya kitaab hai, vimochan ke ek din pahle hi kharida tha :D
ReplyDeletesundar sameeksha
आभार आपका भाई जी
Deleteआभार आपका मुकेश जी
Deleteसार्थक कविता ..........निशा बधाई मौन तो हमेशा गूंजता है बस सुनने वाले कान ही नहीं मिलते
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteआभार आपका मुकेश जी तहेदिल से
Deleteबहुत खूब स्त्री मन के भावो में डूबी कलम
ReplyDeleteआभार आपका
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया अरोरा जी 🙏
Deleteबहुत खूब स्त्री मन के भावो में डूबी कलम
ReplyDeleteEnter your comment...very nice sir...aap ne kuch line me har baat likh di...womesn pe ho rahe jurm k baare me..great
ReplyDeleteआभार आपका 😊
Deleteआभार आपका
Deleteबहुत ही सम्वेदंशेल हैं दोनों रचनाएं ... स्त्री मन को सहज हो लिखा है ...
ReplyDeleteबहुत बढिया ��
Deleteबहुत बढिया ��
Deleteहार्दिकध धन्यवाद आरती जी
Deleteशुक्रगुजार हूँ दिगम्बर नास्वा जी
Deleteआभार आपका दिगम्बर नास्वा जी
Deleteआभार आपका
Deleteक्या कहूँ
ReplyDeleteअत्यन्त सारगर्भित और गहन अभिव्यक्ति निशा जी
अत्यंत आभार राजीव जी
Deleteआभार आपका
Deleteप्रेम के पुंज सी जगमगाती हुई .....स्त्री की सम्पूर्ण
ReplyDeleteप्रेम के पुंज सी जगमगाती हुई .....स्त्री की सम्पूर्ण
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया आशा जी
Deleteआभार आपका
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 27 अगस्त 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeletehardik dhanyavaad vibha ji
Deleteवाह बहुत सुंदर कविताएँ ----
ReplyDeletebahut bahut dhanyavaad seema ji
Deleteसुंदर ब्लॉग
ReplyDeletejee abhutpoorv uplabdhi
Deleteशुभ प्रभात
ReplyDeleteपहला कदम
पहली प्रस्तुति
मंजी हुई कवियत्री
धन्य हुई मैं
आपसे मुलाकात कर
सादर..
aabhari hun yashoda ji , aapka neh bna rahe ... __/\__
Deleteस्त्री मन में डूबती उतराती कविताएं उसके मौन आक्रोश को शब्द देती हुई। बहुत आभार आपका निशा जी की खूबसूरत कविताएं पढवाने का।
ReplyDeleteस्त्री मन में डूबती उतराती कविताएं उसके मौन आक्रोश को शब्द देती हुई। बहुत आभार आपका निशा जी की खूबसूरत कविताएं पढवाने का।
ReplyDeleteaapne saraaha ...... yun kalam ko taqat milti hai , bahut bahut dhanayaavaad
Deleteसुंदर, संवेदनशील अभिव्यक्ति
ReplyDeletehaardik aabhaar preeti agyaat ji
Deleteसार्थक कविता
ReplyDeletehardik dhanavaad sanjay ji
Deleteबहुत खूब
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