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07/09/2016

इस बार -- में पढ़ें -- मुकेश कुमार सिन्हा की कवितायें


कविता कभी गांवों में बसती थी,फिर शहर में बस गयी,और समय के बदलते चलन के साथ महानगरों में बस गयी.मनुष्य की तरह कविता भी अपनी आदतों रहन-सहन और विचारों की तरह आधुनिक होती गयी,कविता के इस बदलते रंग को वर्तमान में देखा और समझा जा सकता है.
मुकेश कुमार सिन्हा की कवितायें इस बदलते दौर की महानगरीय कवितायें हैं जो गाँव,शहर और आधुनिक माहौल में रची हैं,इनकी कवितायें एकांगी और सीमित दायरे में नहीं सिमटती,स्वतंत्र कविता की पैरवी करती हैं.
मुकेश कुमार सिन्हा अपनी कविताओं को रचते समय कई खतरों को उठाकर कविता रचते हैं,इसीलिए इनकी कविताओं में आधुनिकपन,नये प्रतीक,अंग्रेजी मिश्रित शब्द और महानगरीय मुहावरों का बेहद खूबसूरती से प्रयोग होता है.

                                      -- ज्योति खरे
 


नाम-- मुकेश कुमार सिन्हा
जन्म-- 4 सितम्बर 1971,बेगुसराय,बिहार
शिक्षा-- बी,एस.सी.गणित
सम्प्रति--कृषि राज्य मंत्री,भारत सरकार,नई दिल्ली के साथ सम्बद्ध  

ब्लॉग--जिन्दगी की राहें-- http://jindagikeerahen.blogspot.in/
      मन के पंख-- http://mankepankh.blogspot.in/  

संग्रह-- "हमिंग बर्ड" कविता संग्रह   

सह-सम्पादन--कस्तूरी,पगडंडियां,गुलमोहर,तुहिन,एवं गूंज-साझा काव्य संग्रह
प्रकाशित साझा काव्य संग्रह--अनमोल संचयन /अनुगूँज खामोश,खामोशी और हम/ प्रतिभाओं की कमी नहीं/ शब्दों के अरण्य में/ अरुणिमा/ शब्दों की चहलकदमी/ पुष्प पांखुड़ी/ मुठ्ठी भर अक्षर- साझा लघु कथा संग्रह/ काव्या 
सम्मान--1.तस्लीम परिकल्पना ब्लोगोस्तव ( अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स एसोसिएशन ) द्वारा वर्ष 2011 के लिए सर्वश्रेष्ठ युवा कवि पुरस्कार
2.शोभना वेलफेयर सोसाइटी द्वारा वर्ष 2012 के लिए "शोभना काव्य सृजन सम्मान"
3.परिकल्पना- अंतराष्ट्रीय ब्लोगर्स एसोसियेशन द्वारा "ब्लॉग गौरव युवा सम्मान" वर्ष 2013 के लिए
4.विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ से हिंदी सेवा के लिए "विद्या वाचस्पति" 2013 में
5.दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल 2015 में "पोएट ऑफ़ द ईयर" का अवार्ड
6.प्रतिभा रक्षा सम्मान समिति, करनाल द्वारा " शेर-ए-भारत " अवार्ड मार्च 2016 में
 
ईमेल-- mukeshsaheb@gmail.com  
मोब-- +91-9971379996
निवास--लक्ष्मी बाई नगर, नई दिल्ली 110023
 
1--
मैं लिखूंगा एक नज्म तुम पर भी,
और
अगर न लिख पाया तो न सही
कोशिश तो होगी ही
तुम्हारे आगमन से
जीवन के अवसान में
शब्दों के पहचान की !!

तेज गति से चलता रुधिर
जब एकाएक होने लगे शिथिल
नब्जों में पसरने लगे
शान्ति का नवदीप
जैसे एक भभकता दीया
भक्क से बुझने से पहले
चुंधिया कर फैला दे
दुधिया प्रकाश !!
जर्द से चेहरे पर
एक दम से
दिखे, सुनहली लालिमा !
मौसम और समय के पहर से इतर
दूर से जैसे आती हो आवाज
एक मरियल से कुत्ते के कूकने की !!

समझ लेना विदा का वक्त
बस आ ही चुका है !
बेशक न कह - गुडबाय !
पर नजरों से तो पढ़ ही सकते हो
मृत्यु का एक प्रेम गीत !!

इतना तो कहोगे न -
"अब तक की बेहतरीन कविता " !!

2-- पिता का बेटे के साथ संबंध

होता है सिर्फ बायोलोजिकल -
खून का रिश्ता तो होता है सिर्फ माँ के साथ
समझाया था डॉक्टर ने
जब पापा थे किडनी डोनर
और डोनर के सारे टेस्ट से
गुजर रहे थे पापा
"अपने मंझले बेटे के लिए"

जितना हमने पापा को पहचाना
वो कोई बलशाली या शक्तिशाली तो
कत्तई नहीं थे
पर किडनी डोनेट करते वक़्त
पूरी प्रक्रिया के दौरान
कभी नहीं दिखी उनके चेहरे पे शिक़न
शायद बेटे के जाने का डर
भारी पड़ रहा था स्वयं की जान पर

पापा नहीं रहे मेरे आयडल कभी
आखिर कोई आयडल चेन स्मोकर तो हो नहीं सकता
और मुझे उनकी इस आदत से
रही बराबर चिढ !
पर उनका सिगरेट पीने का स्टाइल
और धुएं का छल्ला बनाना लगता गजब
आखिर पापा स्टायलिस्ट जो थे !
फिर एक चेन स्मोकर ने
अपने बेटे की जिंदगी के लिए
छोड़ दी सिगरेट, ये मन में कहीं संजो लिया था मैंने !

पापा के आँखों में आंसू भी देखे मैंने
कई बार, पर
जो यादगार है, वो ये कि
जब वो मुझे पहली बार
दिल्ली भेजने के लिए
पटना तक आये छोड़ने, तो
ट्रेन का चलना और उनके आंसू का टपकना
दोनों एक साथ, कुछ हुआ ऐसा
जैसे उन्होंने सोचा, मुझे पता तक नहीं और
मैंने भी एक पल फिर से किया अनदेखा !
ये बात थी दीगर कि वो ट्रेन मेरे शहर से ही आती थी
लेकिन कुछ स्टेशन आगे आ कर
छोड़ने पहुंचे. किया 'सी ऑफ' !

पाप की बुढ़ाती आँखों में
इनदिनों रहता है खालीपन
कुछ उम्मीदें, कुछ कसक
पर शायद मैं उन नजरों से बचता हूँ
कभी कभी सोच कहती है मैं भी अच्छा बेटा कहलाऊं
लेकिन
'अच्छा पापा' कहलाने की मेरी सनक
'अच्छे बेटे' पर,पड़ जाती है भारी

स्मृतियों में नहीं कुछ ऐसा कि
कह सकूँ, पापा हैं मेरे लिए सब कुछ
पर ढेरों ऐसे झिलमिलाते पल
छमक छमक कर सामने तैरते नजर आते हैं
ताकि
कह सकूँ, पापा के लिए बहुत बार मैं था 'सब कुछ'
पर अन्दर है गुस्सा कि
'बहुतों बार' तो कह सकता हूँ,
पर हर समय या 'हर बार' क्यों नहीं ?

रही मुझमे चाहत कि
मैं पापा के लिए
हर समय रहूँ "सब कुछ"
आखिर उम्मीदें ही तो जान मारती है न !!

3-- 
ब्रुकबांड ताज की
कुछ छिटकती पत्तियों सी तुम
रंग और फ्लेवर दोनों बदल देती हो
अकस्मात !
और मैं महसूस कर कह ही उठता हूँ
वाह ताज !

ताज का अर्थ क्या समझूँ फिर
तुम्हारी वजह से हो पाने वाला बदलाव
या
आँखों व साँसों में कौंधते
प्रेम प्रतीक, प्रेम के सांचे में ढली
मुमताज की याद !

या कहूँ
मेरी दुनिया में सातों वंडर्स
एक तुम्हारी खुशबू में
सिमट के रह गये
और में
सम्मोहित, आवाक् !

हाँ, मेरी मुमताज,
गोरी चिट्टी बेदाग़
पर हमें याद आता है तुम्हारा वो खास चेहरा
जब, कैडबरी सिल्क की बहती बूंदों के साथ
निश्छल व निष्पाप
तुम रहती हो मग्न
स्वयं के होंठो के कोरों से बहती चोकलेटी बूंदों को संभालती
मैं संभाले रखता हूँ तुम्हारे बाल !
आखिर संभालना तुम्हे, इतना मुश्किल तो नहीं

हाँ बालों से आया कुछ खास याद
इन दिनों, कौन से हेयर कलर का कर रही हो उपयोग
मेहँदी / गोदरेज या गार्नियर बरगंडी 3.16
तुम्हारे काले और सुनहले बालों का कोम्बो
भी है न अजीब,
तभी तो, रंग चुकने के बाद
कुछ सुनहरे घनेरे बालों की लटें
जब लहराती हो तुम

तुम्हारे रंगों के तिलस्म में प्रवाहित हो
प्रतिपल निखरता
आज भी कह उठता हूँ
वाह ताज .........नहीं नहीं
वाह मुमताज !



17 comments:

  1. हमेशा अच्छा लिखते हो...

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  2. हमेशा अच्छा लिखते हो...

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  3. मुकेश जी की लगभग सभी कवितायेँ पढ़ी है। यदि ठीक से इनका मूल्यांकन हो तो नए मध्यवर्ग जिसकी जड़ें अभी गाँव में हैं और पंख शहर में, इसके द्वन्द की कविताये हैं इनके पास। नए, अनूठे विषयों को छूने की कला इन्होंने सीख ली है। बहुत आगे देख रहें हैं इन्हें। शुभकामनायें

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  4. बहुतअच्छी कविताएँ. दूसरी कविता को पढ़ तो जी भर आया..
    आप हमेशा ही औरों से अलग लिखते रहे हैं, विविध विषयों और जीवन के कई पहलुओं को छूती आपकी रचनाएँ बेहद अपनी-सी लगती हैं. सकारात्मक रवैया इन्हें और भी सशक्त बनाता है. 'जहाँ न पहुंचे रवि,वहां पहुंचे कवि' वाली कहावत मुकेश जी की रचनाओं पर एकदम सटीक बैठती है. :)

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  5. शुक्रिया ज्योति दा !! इतना सम्मान देने के लिए !
    थैंक्स रश्मि दी, अरुण जी और प्रीति !!

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  6. हर बार की तरह,एक अलग ही अंदाज़ और तासीर की कविताएं,जिसमें मुखर है एक ईमानदार अभिव्यक्ति,जो दिल से दिल तक पहुँचती है।चाहे वो प्रेम हो,इर्ष्या हो,संघर्ष हो या स्वीकारोक्ति,मुकेश जी जब लिखते हैं तो खूब लिखते हैं और डूब कर लिखते हैं।एक विशिष्ट शैली और सुवास से सुसज्जित अनोखी कविताओं के लिये आप बधाई के पात्र हैं।साथ ही मैं आदरणीय खरे जी को साधुवाद अर्पित करती हूँ इस सुन्दर,अनुपम उपक्रम के लिये ��।

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. सहज स्वभाव का सरल प्रवाह ...मुकेश की अभिव्यक्ति को अनायास ही विशिष्ट बना देता है ...
    ओह हाँ !!! मुकेश को भी :)

    ज्योति दा की समीक्षात्मक पारखी नज़र को _/\_

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  9. अच्छी कवितायेँ हैं ....

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  10. बड़ी जीती जागती सी कविताएँ हैं मुकेश जी की । साथ साथ चलती हैं पढते हुए । इन्होंने अपने आपको भाषा की परिधि में नहीं बाँधा है। खड़ी हिंदी के साथ साथ आवश्यक होने पर आँचलिक भाषा के शब्द से लेकर हिंगलिश का भी धड़ल्ले से प्रयोग कर लेते हैं ये इनकी विशेषता है
    है
    लेखन निरंतर चले ऐसी शुभकामनाएँ मुकेश जी को

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  11. बड़ी जीती जागती सी कविताएँ हैं मुकेश जी की । साथ साथ चलती हैं पढते हुए । इन्होंने अपने आपको भाषा की परिधि में नहीं बाँधा है। खड़ी हिंदी के साथ साथ आवश्यक होने पर आँचलिक भाषा के शब्द से लेकर हिंगलिश का भी धड़ल्ले से प्रयोग कर लेते हैं ये इनकी विशेषता है
    है
    लेखन निरंतर चले ऐसी शुभकामनाएँ मुकेश जी को

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  12. बहुत शानदार कवितायेँ, मिश्रित भाषाओँ का प्रयोग कविता को आकर्षक बना देती है, बधाई !

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  13. बहुत शानदार कवितायेँ, मिश्रित भाषाओँ का प्रयोग कविता को आकर्षक बना देती है, बधाई !

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  14. मुकेश कुमार सिन्हा... किसी का भी नाम हो सकता है...पर कहते हैं समन्दर की गहराई नापनी है तो उसमें डूबना होगा..
    शायद एक सप्ताह पहले यूं ही फेसबुक टटोल रही थी कि नज़र ठिठक गई....लिखा था ..ऐसा कहने वाले लोगों की कमी नहीं जो कहते हैं आपकी ये कविता अब तक की रचनाओं में सबसे अच्छी है (हर्फ़ दर हर्फ़ याद नहीं है इसलिए इनवर्टेड कोमा का प्रयोग नहीं कर रही ) पढ़ कर लगा कोई बात तो है बन्दे में बस बिना जाने पहचाने भेज दिया मैत्री आमंत्रण....
    अल्लाह के फ़ज़ल से क़ुबूल भी हो गया......
    फिर पोस्ट देखी...
    वाह वाह वाह वाह
    ""मैं लिखूंगा एक नज़्म तुम पर भी "" " पापा " ""विज्ञापन "" ट्रेन वाकया
    इतना काफी था मुकेश जी के परिचय के लिए...
    नज़्म वाली रचना नेआत्मा भिगो दी....पापा वाली कविता ने आँखें भिगो दी ...विज्ञापन वाली अकविता रूमानियत से सराबोर थी तमाम नाज़ुक एहसास पिरोये गये हैं उसमें.... ट्रेन वाकया सबक़ दे गया...
    गोयाकि..सब कुछ में बहुत कुछ......इस अन्वेषण से पिक्चर एकदम साफ़ हो गई..... मुकेश जी की शब्द सामर्थ्य...शब्दों का चयन...लेखन सामग्री... भाव संप्रेषण...कथावस्तु...कल्पना का आसमान लाजवाब है..जब वो व्यंग करते हैं तो कलेजा कट जाता है.... रुमानी होते हैं तो कलेजा मुंह में आ जाता है और जब सबक़ देते हैं तो सर नत हो जाता है..
    सुदर्शन व्यक्तित्व ...मोहक मुस्कान.. लिबास का चयन..अभिजात्य गरिमा ...थोड़ी अकड़....
    पारिवारिक सामाजिक व राजनीतिक बिषयों पर गहरी पकड़....दुनिया को समझने और समझाने का माद्दा.....आदरणीय व्यक्तित्व के स्वामी हैं मुकेश जी....
    अब तो निरन्तर इनकी कविताएं पढ़ने को मिलेंगी..
    आप साहित्य जगत में देदीप्यमान हों..इसी शुभेच्छा व आशीर्वाद के साथ.........आदर्श

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  15. शुक्रिया और आभार आप सबो का

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  16. बहुत सुन्दर कविताएं दिल में उतर जाने वाली .

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  17. बहुत सुन्दर कविताएं दिल में उतर जाने वाली .

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